डिजिटल युग में इन्फ्लुएंसर्स की जिम्मेदारी कहां खो गई है?
क्या समय आ गया है, आज के डिजिटल युग में सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर्स का प्रभाव इतना बढ़ गया है कि अब अभिव्यक्ति की आजादी और सामाजिक जिम्मेदारी के बीच की लाइन धुंधली होती जा रही है। हर दूसरे दिन भारतीय कंटेंट क्रिएटर्स को लेकर विवाद सामने आते रहते हैं, हाल ही में कुछ क्रिएटर्स के ऐसे विवाद भी सामने आए हैं, जिन्होंने ऑनलाइन युग में जवाबदेही की बहस को फिर से जन्म दे दिया है। क्या आपने ‘इंडियाज़ गॉट लेटेंट’ के बारे में सुना है? यह एक भारतीय यूट्यूबर द्वारा प्रस्तुत यूट्यूब शो है, जो अपनी बातचीत की सीमाओं को पार करने के लिए बदनाम हो चुका है। इस शो के निर्माता समय रैना और कुछ डिजिटल पर्सनैलिटीज जैसे अपूर्वा मुखीजा, जसप्रीत सिंह, आशीष चंचलानी और उर्फ़ी जावेद ने रणवीर अल्लाहबादिया का बचाव करते हुए ऐसे कंटेंट में अपनी भूमिका निभाई, जिसने कानूनी शिकायतों और जनाक्रोश को जन्म दिया। सवाल यह है कि क्या इन्फ्लुएंसर्स को सख्त कार्यवाही का सामना करना चाहिए, जब उनकी बातें लोगों की भावनाओं को ठेस पहुंचाएं?
‘प्रेरणादायक’ क्रिएटर्स का दोगलापन
देखिए, सोशल मीडिया पर ऐसे क्रिएटर्स की कमी नहीं है, जो खुद को ‘प्रेरणादायक’ और ‘शिक्षक’ बताते हैं। लेकिन उनके कारनामों ने उनके ऑनलाइन व्यक्तित्व और असल दुनिया के कार्यों के बीच एक बड़ा अंतर उजागर कर दिया है। रणवीर अल्लाबदिया को ही ले लीजिए, वे एक लोकप्रिय डिजिटल क्रिएटर हैं, लेकिन हाल ही में उन्होंने ऐसे शब्दों का इस्तेमाल किया, जो बेहद ही संवेदनशील, शर्मनाक, अभद्र और अनुचित थे। उनकी माफी भी जनता के गुस्से को शांत करने में योगदान नहीं दे पाई। यह बात साफ़ है कि माफ़ी मांगकर चीजें ठीक करने के बजाय वास्तविक जिम्मेदारी लेना जरूरी है।
माफी मांगना हर बात का हल नहीं
रणवीर अल्लाहबादिया ने अपनी प्रतिष्ठा बचाने के लिए एक माफी का वीडियो जरूर बनाया, लेकिन उनके अपने शब्द ही उनके दिखावे को उजागर करते हैं। उन्होंने कहा, “कॉमेडी मेरा क्षेत्र नहीं है,” लेकिन उनकी टिप्पणी कॉमेडी नहीं थी, यह आपत्तिजनक थी। उन्होंने यह भी स्वीकार किया, “मेरी टिप्पणी उचित नहीं थी; यह मजाकिया भी नहीं थी।” लेकिन दोस्तों, यह कहना काफ़ी नहीं है। उनके बयान में न केवल हास्य की कमी थी, बल्कि यह एक गहरी समस्या को भी उजागर करता है: अपने शब्दों का सही चयन ना करना और उसे समझने में असफल रहना।
डिजिटल युग में, केवल माफ़ी से गैर-जिम्मेदाराना बयानों का प्रभाव मिटाया नहीं जा सकता। नुकसान तो हो चुका है, और सार्वजनिक हस्तियों को उनके बयानों के लिए जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए। सोशल मीडिया का मतलब कानून तोड़ना और किसी को भी अभद्र बोल देना नहीं है, क्रिएटर्स को इनके परिणामों का सामना करना ही पड़ेगा। क्रिएटर्स को किसी भी सूरत में अपने प्लेटफॉर्म्स का दुरुपयोग करना का अधिकार नहीं है, ना तो संवैधानिक और ना ही सामाजिक।